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सुखबीर बादल का इस्तीफा: बादल ने 16 साल बाद छोड़ा शिअद का नेतृत्व, कौन होगा नया अध्यक्ष, ये है पार्टी के पतन की बड़ी वजह

राज्य में शिअद का ग्राफ गिरने का मुख्य कारण बेअदबी की घटनाएं मानी जाती हैं। जून 2015 में बुर्ज जवाहर सिंह वाला (फरीदकोट) स्थित गुरुद्वारा साहिब से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ चोरी हो गई थी।

आखिरकार 16 साल बाद सुखबीर बादल ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ को सौंपा। सुखबीर 2008 से लगातार शिअद के अध्यक्ष थे। उनके अचानक इस्तीफे से अकाली दल में हलचल मच गई। बादल के इस्तीफे पर पार्टी की कार्यसमिति ने 18 नवंबर को चंडीगढ़ स्थित पार्टी कार्यालय में बैठक बुलाई है। इस बैठक में इस्तीफे पर विचार करने और नया पार्टी अध्यक्ष चुनने समेत आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। इस्तीफा सौंपते हुए सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को उनके निरंतर समर्थन के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि जिस तरह से उनके कार्यकाल के दौरान उनके पार्टी कार्यकर्ताओं ने चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे और पूरा समर्थन दिया, उसके लिए वह हमेशा उनके आभारी रहेंगे। बादल के इस्तीफे पर पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि पार्टी के अध्यक्ष पद और संगठनात्मक ढांचे के लिए पिछला चुनाव 14 दिसंबर 2019 को हुआ था। उन्होंने कहा कि चूंकि अगले महीने चुनाव होने हैं, इसलिए इस प्रक्रिया के संचालन का रास्ता साफ करने के लिए सुखबीर बादल ने इस्तीफा देने का फैसला किया है। इस प्रक्रिया के दौरान सबसे पहले सदस्यता अभियान चलाया जाएगा, जिसके बाद सर्कल प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाएगा। सर्कल प्रतिनिधि फिर जिला प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे जो राज्य प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। उन्होंने कहा कि जनरल हाउस बनाने वाले राज्य प्रतिनिधि आगे पार्टी अध्यक्ष और पदाधिकारियों के साथ-साथ कार्यकारिणी का भी चुनाव करेंगे।

पार्टी में बगावत के बाद इस्तीफे का दबाव बढ़ा

पंजाब में शिअद का पतन भले ही बेअदबी की घटनाओं के बाद शुरू हुआ हो, लेकिन जब तक प्रकाश सिंह बादल जीवित थे, तब तक पार्टी में विरोधी स्वर मुखर नहीं हुए। उनके निधन के बाद वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी प्रधान सुखबीर बादल को निशाना बनाना शुरू कर दिया। पार्टी प्रधान को बदलने की मांग उठने लगी। जब सुखबीर नेतृत्व छोड़ने को तैयार नहीं हुए, तो कई वरिष्ठ नेताओं ने शिअद छोड़कर अलग पार्टी बना ली। प्रेम सिंह चंदूमाजरा, गुरप्रताप वडाला और बीबी जागीर कौर समेत कई नेताओं ने शिअद में सुधार की लहर लाई। बेअदबी के मामलों को लगातार उठाकर सुखबीर पर इस्तीफे का दबाव बनाया गया। इन मामलों में सुखबीर को हाल ही में श्री अकाल तख्त ने तनखैया भी घोषित किया था। अभी उनकी सजा सुनाई जानी बाकी है।

बेअदबी की घटनाओं से गिरा शिअद का ग्राफ

राज्य में शिअद का ग्राफ गिरने का मुख्य कारण बेअदबी की घटनाएं मानी जाती हैं। जून 2015 में बुर्ज जवाहर सिंह वाला (फरीदकोट) स्थित गुरुद्वारा साहिब से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ चोरी हो गई थी। फिर 12 अक्टूबर 2015 को बरगाड़ी (फरीदकोट) स्थित गुरुद्वारा साहिब से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 110 अंग चोरी कर फाड़ दिए गए थे। उस समय सुखबीर बादल डिप्टी सीएम थे और गृह विभाग भी उनके पास था। कोटकपूरा और बहबल कलां में गोलीबारी की घटना के बाद बेअदबी की इन घटनाओं ने जोर पकड़ लिया। इसके बाद 2017 और 2022 में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में शिअद को भारी हार का सामना करना पड़ा। बादल अपनी राजनीतिक जमीन खो बैठे। अब हालात ऐसे हैं कि इस बार पार्टी ने उपचुनाव लड़ने से भी इनकार कर दिया है।

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