जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार हुर्रियत के उदारवादी धड़े के नेताओं ने एक अनौपचारिक बैठक की
श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार हुर्रियत के उदारवादी धड़े के नेताओं ने एक अनौपचारिक बैठक की। इस बैठक की अध्यक्षता मीरवाइज उमर फारूक ने की, जिनकी हाल ही में नजरबंदी खत्म हुई है। मीरवाइज ने कहा कि यह बैठक अनौपचारिक थी। बैठक में मीरवाइज के साथ वरिष्ठ हुर्रियत सदस्य अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन और मसरोर अब्बास अंसारी भी शामिल हुए। मीरवाइज ने इस मुलाकात का वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर शेयर करते हुए लिखा, "अल्हम्दुलिल्लाह! पांच साल बाद अपने प्रिय सहयोगियों प्रोफेसर साहब, बिलाल साहब और मसरोर साहब के साथ होने का मौका मिला। एक भावनात्मक अनुभव जिसमें जेल में बंद साथियों की कमी महसूस हुई। लेकिन प्रोफेसर साहब को इस उम्र में अच्छी स्थिति में देख खुशी हुई।”
बैठक में किसी महत्वपूर्ण बात पर चर्चा नहीं
लोन और भट को प्रोफेसर भी कहा जाता है। ये दोनों उदारवादी हुर्रियत के कार्यकारी सदस्य रहे हैं जबकि अब्दुल गनी भट ने संगठन के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है। मसरूर अब्बास अंसारी हुर्रियत के पूर्व अध्यक्ष अब्बास अंसारी के बेटे हैं, जिनकी 2021 में मृत्यु हो गई थी। मीरवाइज ने कहा कि बैठक में किसी महत्वपूर्ण बात पर चर्चा नहीं हुई। मीरवाइज ने इसे महज एक अनौपचारिक बैठक बताया। उन्होंने एचटी को बताया, "घर में नजरबंद रहने के दौरान इन्हें मुझसे मिलने की अनुमति नहीं थी। यह बैठक लंबे समय के बाद हुई एक अनौपचारिक मुलाकात थी।"
2018 से अलगाववादी नेतृत्व, विशेष रूप से कट्टरपंथियों के खिलाफ शिकंजा कसा जा रहा था, जिसमें कई यूएपीए और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जेल में बंद हैं। हालांकि मीरवाइज को अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद घर में नजरबंद कर दिया गया था। उन्हें सितंबर 2023 में लगभग चार साल बाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद बाहर जाने की अनुमति दी गई। इस दौरान उन्होंने श्रीनगर के जामिया मस्जिद में अपने उपदेश जारी रखे। हाल के दिनों में उनके ऊपर कभी-कभी नजरबंदी की स्थिति बनी रही है, जिसे लेकर प्रशासन ने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए किया जा रहा है।
हुर्रियत भी सहयोग करने को तैयार – मीरवाइज
अपनी ताजा शुक्रवार की नमाज में, मीरवाइज ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह जम्मू-कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत की शुरुआत करे, जिसमें हुर्रियत भी सहयोग करने को तैयार है। उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर में चुनाव इस मुद्दे का समाधान नहीं हैं और 2019 के एकतरफा फैसलों के बाद भी यह मसला जस का तस बना हुआ है।” हुर्रियत नेताओं की यह मुलाकात कश्मीर में नई चर्चा को जन्म दे रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में हाल ही में नई सरकार का गठन हुआ है, लेकिन सुरक्षा के मसलों पर इसका कोई अधिकार नहीं होगा, जो कि उपराज्यपाल के तहत आता है।
इस बीच, जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत की बैठक को लेकर राजनीतिक हलकों में भी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अपना पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने कहा, "मीरवाइज उमर फारूक साहिब और उनके सहयोगियों को आखिरकार लंबे समय बाद मिलने की अनुमति दी गई, यह कश्मीर के राजनीतिक माहौल में एक साफ बदलाव का संकेत है, जो कि जनता के व्यापक हित में काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।" उन्होंने आगे कहा, "राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों के बावजूद, सभी पक्ष, विशेषकर राजनीतिक इकाइयां, जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के निर्माण में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं, जिसमें शांति, समृद्धि और लोगों का कल्याण मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।"
हुर्रियत क्या है?
हुर्रियत जम्मू-कश्मीर में एक अलगाववादी राजनीतिक संगठन है। यह संगठन 1993 में बना था और इसका मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना है। हुर्रियत का मानना है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होना चाहिए और वहां के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए।
हुर्रियत दो प्रमुख गुटों में विभाजित है-
मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत (मॉडरेट गुट) – यह गुट बातचीत के जरिए कश्मीर समस्या का हल निकालने के पक्ष में है। सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत (कट्टरपंथी गुट) – यह गुट कश्मीर की पूर्ण आजादी की मांग करता है और भारत सरकार से किसी भी प्रकार की बातचीत को अस्वीकार करता है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में कई छोटे-बड़े दल शामिल हैं, जिनका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक भविष्य के बारे में निर्णय लेने का अधिकार वहां की जनता को देना है। यह संगठन कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाने का प्रयास करता है।