श्री हेमकुंड साहिब व लोकपाल लक्ष्मण मन्दिर के कपाट आज दोपहर एक बजे शीतकाल के लिए बंद हुए
हेमकुंड
श्री हेमकुंड साहिब व लोकपाल लक्ष्मण मन्दिर के कपाट गुरुवार को दोपहर एक बजे शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने के दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं ने अंतिम अरदास का साक्षी बनकर पवित्र सरोबर में डुबकी लगाई। कपाट बंद होने से पहले श्रद्धालुओं द्वारा निशान साहिब के वस्त्र भी बदले गए। इस वर्ष यात्रा काल के दौरान 1.84 लाख श्रद्धालुओं ने हेमकुंड साहिब व लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के दर्शन कर माथा टेका है।
तीन कुंतल फूलों से सजाया
हेमकुंड साहिब के कपाट बंद होने की प्रक्रिया सुबह से ही प्रारंभ हो गयी थी। हेमकुंड साहिब व लोकपाल लक्ष्मण मंदिर को तीन कुंतल फूलों से सजाया गया गया था। कपाट बंदी के कार्यक्रम को गौरवमयी बनाने के लिए पंजाब से सतनाम सिंह के नेतृत्व में सेवानिवृत सेना के जवानों का बैंड व गढ़वाल स्काउट के बैंड की धुन पर तड़के 2500 से अधिक श्रद्धालु हेमकुंड के बेस कैंप घाघरिया से हेमकुंड पहुंचे।
कब क्या हुआ?
प्रात: नौ बजकर 30 मिनट पर मुख्य ग्रंथी मिलाप सिंह व ग्रंथी कुलबंत सिंह के नेतृत्व में सुखमणि साहिब पाठ हुआ।
10 बजकर 50 मिनट पर पुणे से आए अमित सिंह के जत्थे ने सबद कीर्तन गायन किया।
12 बजकर 15 मिनट पर साल की अंतिम अरदास हुई।
12 बजकर 30 मिनट पर गुरु ग्रंथ साहिब का हुक्मनामा पढ़ने के बाद पंच प्यारों के नेतृत्व में गुरु ग्रंथ साहिब को सच्चखंड में विराजमान कर दोपहर एक बजे गुरुद्वारा के कपाट बंद किए गए।
इसकी के साथ लोकपाल लक्ष्मण मंदिर में भी पूजा अर्चना के बाद मुख्य पुजारी ने सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में मंदिर के कपाट विधि विधान से शीतकाल के लिए बंद किए।
1886 में हुई थी खोज
हेमकुंड साहिब की खोज अमृतसर पंजाब के पत्रकार पंडित तारा सिंह नरोत्तम ने 1886 में की थी। तब उन्होंने गुरूवाणी के दसम ग्रंथ में लिखित हेमकुंंड पर्वत है जहां, सप्तश्रंख शोबत है तहां, के आधार पर इस स्थान को खोज कर इसे गुरू की तपस्थली बताते हुए देश दुनिया के सामने विचार रखे थे। दशम ग्रंथ में लिखा है कि गुरू गोविंद सिंह ने अपने पूर्व जन्म में हेमकुंड साहिब में दुष्टदमन के रूप में कठोर तपस्या की थी।
इसके बाद 1934 में बंगाल इंजीनियरिंग के हवलदार मोदन सिंह के साथ टिहरी राजदरबार में मुख्य ग्रंथी संत सोहन सिंह से मिलकर हेमकुंड पहुंकर यहां पर पूजा अरदास शुरू कराई। इसके बाद से ग्रीष्मकाल में हमेशा यहां की यात्रा सुचारू रही। 1992 में हेमकुंड गुरूद्वारा का भव्य निर्माण हुआ।